लघु और मध्यम उद्योग न केवल हमारे देश में, बल्कि विकसित देशों में भी विनिर्माण क्षेत्र की रीढ़ की हड्डी हैं। भारत में विनिर्माण के क्षेत्र में लघु उद्यम क्षेत्र का योगदान 40 प्रतिशत है। निर्यात में भी लघु उद्योग क्षेत्र का पर्याप्त योगदान है। पिछले समय में लघु उद्योग अपेक्षतया सहायता और सुरक्षा प्राप्त क्षेत्र ही होता था। उन्हें अधिक सुरक्षा दी जाती थी और कई वस्तुओं का उत्पादन लघु उद्योग क्षेत्र में ही होता था। इस क्षेत्र की इकाइयों को विशेष वित्तीय प्रोत्साहन दिये जाते थे और कई सहायक कार्यक्रम चलाये जाते थे, ताकि छोटे उद्योग बने रहें।
1991 में सुधारों की शुरूआत के बाद कुल मिलाकर विनिर्माण क्षेत्र के विकास और छोटे उद्योगों की स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है। आयात पर शुल्क काफी घटा दिये गए हैं। भारत का धीरे-धीरे विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण हो रहा है, नये व्यापारिक ब्लॉक बन रहे है और भारत सहित कई देश स्पर्धा की दृष्टि से अपने लाभ वाले क्षेत्रों में व्यापार बढ़ाने के लिए प्राथमिकता प्राप्त व्यापार समझौतों, मुक्त व्यापार समझौतों या व्यापक आर्थिक समझौतों में शामिल हो रहे है। इस प्रक्रिया में भारतीय अर्थव्यवस्था अधिक खुली होती जा रही है और इस बात की नितांत आवश्यकता है कि उद्योग नई स्थिति के अनुरूप स्वंय को ढालें। भारतीय उद्योगों को स्पर्धात्मक बनने के लिए अपने लागत मूल्यों को कम करना होगा ताकि वे अपना अस्तित्व बनाये रख सकें और विकसित हों। विशेषकर छोटे उद्योगों के सामने जो स्थिति है उसमें, अवसर और चुनौती दोनों शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय रूप से स्पर्धात्मक बनने से लघु उद्योगों को विश्व बाजार में आगे बढ़ने का अवसर मिलता है। अन्य उद्योगों को से अपनी स्थिति को समझना होगा और यदि अपने अस्तित्व को बचाना है, तो चुनौतियों का सामना करने के लिए स्पर्धात्मक बनना होगा।
सरकार ने 2005 में राष्ट्रीय स्पर्धात्मकता कार्यक्रम की घोषणा की थी। इसका उद्देश्य स्पर्धात्मक बनने के प्रयासों में लघु और मध्यम उद्यमों की सहायता करना है तथा उदारीकरण और शुल्क दरों में रियायत से बनने वाले स्पर्धात्मक दबावों के अनुरूप सक्षम बनने में उन्हें सहायता देना है।
कम लागत विनिर्माण स्पर्धात्मकता योजना (Lean Manufacturing Competitiveness Scheme)
इस योजना के अंतर्गत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को उचित कर्मचारी प्रबंधन, स्थान के बेहतर उपयोग, वैज्ञानिक सूची प्रबंधन, इंजीनियरी समय में बचत आदि के जरिए अपनी विनिर्माण लागत को कम करने में सहयता दी जायेगी। कम लागत विनिर्माण स्पर्धात्मकता योजना से उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार होता है और लागत कम होती है, जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में स्पर्धा के लिए आवश्यक है।
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