11वीं योजना के दौरान निजी क्षेत्र ने बिजली उत्पादन का करीब 70 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त....
11वीं पंचवर्षीय योजना के मध्यावधि मूल्यांकन के अनुसार निजी क्षेत्र में 19796.5 मेगावाट क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। लोकसभा में आज एक प्रश्न के लिखित उत्तर में विद्युत मंत्री श्री के.सी. वेणुगोपाल ने बताया कि 10 अगस्त, 2011 तक 69.5 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 13761 मेगावाट की क्षमता (थर्मल – 13069 मेगावाट एवं हाइड्रो-692 मेगावाट) 10 अगस्त, 2011 तक निजी क्षेत्र द्वारा जोड़ी गई है। श्री वेणुगोपाल ने बताया कि सरकार ने निजी क्षेत्रों समेत बिजली परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा के लिए बहु स्तरीय निगरानी प्रणाली अपनाई है, जो निम्नानुसार है –
1. केंद्रीय बिजली प्राधिकरण द्वारा निगरानी स्थान पर जाकर लगातार एवं विकासकर्ताओं तथा उपकरण आपूर्तिकर्ताओं के साथ बातचीत की जाती हैं। केंद्रीय बिजली प्राधिकरण विकासकर्ताओं तथा अन्य साझेदारों के साथ बैठक की समीक्षा करता है तथा आवश्यक मुद्दों पर प्रकाश डालता है।
2. बिजली परियोजना निगरानी पैनल द्वारा निगरानी।
11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान लागू थर्मल तथा हाइड्रो विद्युत उत्पादन की परियोजनाओं की लक्ष्य की निगरानी करने के लिए विद्युत मंत्रालय ने बिजली परियोजना निगरानी पैनल गठित किया है।
3. सरकार द्वारा विभिन्न स्तरों पर जिनमें विद्युत मंत्रालय, भारी उद्योग मंत्रालय, प्लानिंग कमिशन तथा कैबिनेट सचिवालय द्वारा नियमित रूप से समीक्षा की जाती है। इनमें आ रही बाधाओं की पहचान की जाती है तथा अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों का त्वरित निपटान किया जाता है।
शहरों के निकट सब्जी क्लस्टरों के लिए 300 करोड़ रूपये....
सरकार ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अधीन वर्ष 2011-12 के दौरान शहरी क्लस्टरों के लिए सब्जियों संबंधी पहलों पर एक नई योजना शुरू की है, जिस पर 300 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है।
इस योजना के माध्यम से प्रत्येक राज्य में 10 लाख अथवा अधिक जनसंख्या वाले एक शहर अथवा नगर में बेहतर गुणवत्ता वाली सब्जियों की आपूर्ति सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है। ऐसे राज्यों में जहां 10 लाख की जनसंख्या वाला कोई शहर न हो जैसे – पूर्वोत्तर और गोवा राज्य तो वहां 10 लाख से कम जनसंख्या वाले राज्य की राजधानी अथवा शहर को इसमें शामिल किया गया है।
देश में सब्जियों का उत्पादन वर्ष 2005-06 के 11.13 करोड़ टन से बढ़कर वर्ष 2009-10 में 13.37 करोड़ टन हो गया है। इसी प्रकार पिछले 5 वर्षों की अवधि में सब्जियों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 279 ग्राम प्रतिदिन से बढ़कर 317 ग्राम प्रतिदिन हो गयी है।
Wednesday, October 12, 2011
अंत्योदय अन्न योजना
अंत्योदय अन्न योजना
गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की 6.52 करोड़ की स्वीकृत संख्या, जिनमें लगभग 2.44 अंत्योदय अन्न योजना परिवार शामिल हैं, के लिए खाद्यान्नों (गेहूं और चावल) का आबंटन किया जाता है । इन परिवारों के लिए 35 किलोग्राम प्रतिपरिवार प्रतिमाह की दर पर आबंटन किया जाता है ।
2.50 करोड़ अंत्योदय अन्न योजना परिवारों की सीमा के अंदर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को अंतयोदय अन्न योजना परिवारों की पहचान करने के लिए जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार सभी आदिम आदिवासी परिवार अंतत्योदय अन्न योजना परिवारों के रूप में पहचाने जाने के लिए पात्र है । चूंकिअंत्योदय अन्न योजना परिवारों की वास्तविक पहचान करना राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों की जिम्मेदारी होती है इसलिए स्कीम के अधीन कवर किए गए आदिम आदिवासी परिवारों की संख्या के ब्यौरे इस विभाग में नहीं रखे जाते हैं ।
राष्ट्रीय शीतागार विकास केन्द्र की स्थापना
केन्द्र सरकार देश में शीतागार शृंखला के विकास हेतु एक स्वायत्तशासी राष्ट्रीय शीतागार विकास केन्द्र स्थापित करने का विचार कर रही है । सरकार ने एक स्वायत्त संस्था के रूप में राष्ट्रीय शीत शृंखला विकास केन्द्र की स्थापना की है । इसे सोयायटी अधिनियम, 1860 के तहत वर्ष 2011 में एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया है ।
एनसीसीडी के अध्यादेश में शीत श्रृंखला क्षेत्र में दक्ष मानवश्रम की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मानव संसाधन विकास कार्यक्रमों के अलावा ताजा फलों एवं सब्जियों सहित शीघ्र खराब होने वाली खाद्य वस्तुओं हेतु शीत शृंखला अवसंरचना के लिए तकनीकी मानक निर्धारित करना एवं उनका आवधिक संशोधन करना निहि है । एनसीसीडी में समितियां गठित की हैं , जो इस प्रकार हैं-
1. तकनीकी विनिर्देशन एवं मानक समिति
2. परियोजना तैयारी, मूल्यांकन एवं परियोजना प्रमाणीकरण समिति
3. प्रशिक्षण एवं एचआरडी समिति
4. अनु. एवं विकास समिति
5. परीक्षण प्रयोगशाला एवं उत्पाद प्रमाणीकरण समिति
6. शीत श्रृंखला अवसंरचना में गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का अनुप्रयोग
शीत शृंखला की स्थापना का एनएचएम, एनएचबी, एपीईडीए और एमओएफपीआई के कार्यक्रमों के माध्यम से समर्थन किया जा रहा है ।
सरकार ने एनसीसीडी की स्थापना के साथ-साथ शीत शृंखला अवसंरचना के सृजन हेतु ग्यारहवीं येाजना अवधि के लिए बजटीय प्रावधान के रूप में 25.00 करोड़ रूपये की धनराशि अनुमोदित की है ।
आर्थिक दृष्टिकोण 2011-12
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ. सी. रंगराजन ने आर्थिक दृष्टिकोण 2011-12 (इकॉनोमिक आउट लुक, 2011-12) जारी किया है । इस अवसर पर डॉ. रंगराजन ने इसकी प्रमुख विशेषताओं का भी उल्लेख किया, जो इस प्रकार है –
Ø वर्ष 2011‑12 में आर्थिक विकास 8.2 प्रतिशत का लक्ष्य
· वर्ष 2010‑11 में कृषिविकास दर 6.6 प्रतिशत रही। वर्ष 2011‑12 में कृषिविकास दर वृद्धि3.0 प्रतिशत का लक्ष्य
· वर्ष 2010‑11 में औद्योगिक विकास दर 7.9 प्रतिशत रही। वर्ष 2011‑12 में इसका 7.1 प्रतिशत का लक्ष्य
· वर्ष 2009‑10 में सेवाओं में 9.4 प्रतिशत की दर से विकास हुआ। वर्ष 2011‑12 में इसके विकास का लक्ष्य 10.0 प्रतिशत रहने का अनुमान
Ø 8.2 प्रतिशत की लक्षित विकास दर पिछले वर्ष की तुलना में कम थी, परंतु वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इसे उच्च विकास दर के तौर पर स्वीकार किया जाना चाहिए।
Ø वैश्विक आर्थिक और वित्तीय परिस्थितिमें सुधार की संभावना कम।
Ø नौ प्रतिशत की विकास दर प्राप्त करने के लिए स्थिर निवेश दर में वृद्धिकिया जाना आवश्यक।
· वर्ष 2010‑11 में 36.3 प्रतिशत और वर्ष 2011‑12 में 36.7 प्रतिशत की निवेश दर का आकलन
· सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में घरेलू बचत दर वर्ष 2010‑11 में 33.8 प्रतिशत और वर्ष 2011‑12 में 34.0 प्रतिशत का आकलन था।
Ø दीर्घावधिऔसत के अनुमान के अनुसार वर्ष 2011 में मानसून के 90 से 96 की परिधिमें रहने की संभावना। परिणामस्वरूप कृषिउत्पादन क्षेत्र का विकास तीन प्रतिशत की दर से होने का अनुमान।
Ø औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की समीक्षित श्रंखला से उत्पादन स्तर का पता चलता है जो पुरानी श्रंखला की तुलना में बेहतर है।
· उत्पादन विकास का पुरानी श्रंखला के अनुरूप वर्ष 2007‑08 में आकलन किया गया था जबकिवर्ष 2008‑09 और वर्ष 2009‑10 में अधिक आकलन किया गया था।
· औद्योगिक उत्पादन पर वैश्विक संकट का बहुत प्रभाव पड़ा जिसका संकेत पुरानी श्रंखलाओं में मिलता है।
· पुरानी श्रंखलाओं द्वारा 7.8 प्रतिशत के उत्पादन विकास का संकेत मिलता था, उसकी तुलना में वर्ष 2020‑11 में उत्पादन विकास दर 8.2 प्रतिशत रही जो अधिक है।
Ø वर्ष 2010‑11 में चालू खाता घाटा (सकल घरेलू उत्पाद का 2.6 प्रतिशत) 44.3 अरब डॉलर था और वर्ष 2011‑12 में इसके (सकल घरेलू उत्पाद का 2.7 प्रतिशत) 54.0 अरब डॉलर रहने का अनुमान।
· वर्ष 2010‑11 में वाणिज्यिक व्यापार घाटा 130.5 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का 7.59 प्रतिशत है और वर्ष 2011‑12 में इसके 154.0 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का 7.7 प्रतिशत रहने की संभावना है।
· वर्ष 2010‑11 में अलक्ष्य व्यापारिक बेशी 86.2 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का पांच प्रतिशत है और वर्ष 2011‑12 में इसके 100.0 अरब डॉलर या सकल घरेलू उत्पाद का पांच प्रतिशत रहने की संभावना है।
Ø वर्ष 2010‑11 में पूंजी प्रवाह 61.9 अरब डॉलर रहा और वर्ष 2011‑12 में इसके 72.0 प्रतिशत रहने की संभावना।
· वर्ष 2011/12 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 35 अरब डॉलर अनुमानित जबकिवर्ष 2010‑11 में यह 23.4 अरब डॉलर के स्तर पर था।
· विदेशी औद्योगिक निवेश 14 अरब डॉलर रहने का अनुमान जो पिछले वर्ष 30.3 अरब डॉलर के स्तर के आधे से भी कम है।
Ø वर्ष 2010‑11 में संचयों में 15.2 अरब डॉलर की वृद्धि। वर्ष 2011‑12 में इसके 18.0 अरब डॉलर होने का आकलन।
Ø मार्च 2012 में मुद्रास्फीतिदर 6.5 प्रतिशत रहने का आकलन।
· जुलाई‑अक्टूबर 2011 में मुद्रास्फीतिदर नौ प्रतिशत के स्तर पर बनी रहेगी। नवंबर में कुछ राहत मिलने की संभावना है और मार्च 2012 तक इसमें 6.5 प्रतिशत तक पहुंचने का आकलन है।
· उपलब्ध खाद्यान्न भंडारण को उदारता के साथ जारी करना होगा।
· मांग दबाव का मुकाबला करने में वित्तीय नीतिकी महत्वपूर्ण भूमिका। सुनिश्चित करना होगा किवित्तीय घाटा बजटीय स्तर से अधिक न होने पाए।
· जब तक मुद्रास्फीतिमें गिरावट का रुझान न आ जाए, तब तक भारतीय रिजर्व बैंक को कड़ी मौद्रिक नीतिका पालन करना होगा।
Ø 2011/12 के बजट अनुमानों में उल्लिखित वित्तीय लक्ष्य को प्राप्त करना होगा ताकिचुनौतियों का सामना किया जा सके
Ø वर्ष 2011/12 के लिए बजट अनुमान – केंद्र के लिए 4.7 प्रतिशत, राज्यों के लिए 2.1 प्रतिशत और बजटीय देनदारियों सहित समेकित वित्तीय घाटा 6.8 प्रतिशत।
Ø सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त करने और कर बकायों के मामलों को हल करने के लिए प्रयास बढ़ाने होंगे।
Ø जिन खर्चों को टाला जा सकता है उन्हें कम किया जाए और राजस्व बढ़ाने के लिए उपाय शुरू किए जाएं।
Ø राज्यों के साथ चलने वाले मामलों का निपटारा किया जाए और माल एवं सेवा कर आरंभ किया जाए।
Ø राज्य सरकारों की देनदारियां सीमित करने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में वितरण प्रणाली में सुधार किया जाए।
Ø ध्यान देने योग्य प्रमुख मुद्दे
· राज्यों की विकास दरों के आंकड़े
o हालिया आंकड़ों का विश्लेषण यह इंगित करता है किजहां अधिकांश कम आय वाले राज्यों ने मजबूत विकास दर को दर्शाया है, वहीं कुछ उच्च आय वाले राज्यों ने भी वृद्धिदर्ज की है ।
Ø चालू खाता घाटा
- विकास की हमारी जरूरतों के मद्देनजर एक मध्यम व्यापार घाटा और सीएडी अपरिहार्य है। सीएडी के वित्त पोषण के लिए विदेशी निवेश प्रवाह को प्रोत्साहित किए जाने की जरुरत है। हालांकि सीएडी को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5 प्रतिशत से नीचे निहत किया जाना चाहिए।
· विद्युत क्षेत्र
- भारत के विकास की कहानी काफी हद तक विद्युत क्षेत्र से जुड़ी हुई है ।
- उच्च एटी एंड सी घाटे को कम करने के लिए नीति में तत्काल हस्तक्षेप की जरुरत है ताकि विद्युत संयंत्रों में कोयले की उपलब्धता, भूमि अधिग्रहण और पर्यावर्णीय मंजूरी और राज्यों के द्वारा विद्युत दरों के संशोधन को सुनिश्चित किया जा सके।
- ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना
· खाद्य सुरक्षा
- एक उपयुक्त विधायी अधिनियमन के माध्यम से गरीबों को खाद्य पदार्थों का कानूनी अधिकार दिए जाने की ज़रूरत ।
- कानूनी अधिनियमनों को लागू करते वक्त अनाज की उपलब्धता को ध्यान में रखना होगा।
- वितरण को मजबूत करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार की जरूरत है। कम्प्यूटरीकरण, स्मार्ट कार्डों की शुरूआत और विशेष पहचान संख्या का इस्तेमाल महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है ।
सारणी-1 सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि- वास्तविक और अनुमानित
2004/05 मूल्य पर स्थिर
वर्ष-दर- वर्ष वृद्धिदर प्रतिशत में | ||||||||
वार्षिक दर | 2005-06 | 2006-07 | 2007-08 | 2008-09 | 2009-10 | 2010-11 | 2011-12 | |
क्यूई | संशोधित | अनुमानित | ||||||
1 | कृषिऔर इससे संबंधित क्रियाकलाप | 5.1 | 4.2 | 5.8 | -0.1 | 0.4 | 6.6 | 3.0 |
2 | खनन और उत्खनन | 1.3 | 7.5 | 3.7 | 1.3 | 6.9 | 5.8 | 6.0 |
3 | विनिर्माण | 10.1 | 14.3 | 10.3 | 4.2 | 8.8 | 8.3 | 7.0 |
4 | विद्युत, गैस और जल आपूर्ति | 7.1 | 9.3 | 8.3 | 4.9 | 6.4 | 5.7 | 7.0 |
5 | निर्माण | 12.8 | 10.3 | 10.7 | 5.4 | 7.0 | 8.1 | 7.5 |
6 | व्यापार, होटल, परिवहन, भंडारण और संचार | 12.2 | 11.6 | 11.0 | 7.5 | 9.7 | 10.3 | 10.8 |
7 | वित्त, बीमा ,स्थावर संपत्ति और व्यापारिक सेवाएं | 12.7 | 14.0 | 11.9 | 12.5 | 9.2 | 9.9 | 9.8 |
8 | सामुदायिक और व्यक्तिगत सेवाएं | 7.0 | 2.9 | 6.9 | 12.7 | 11.8 | 7.0 | 8.5 |
9 | कुल घरेलू उत्पाद (उत्पादन लागत) | 9.5 | 9.6 | 9.3 | 6.8 | 8.0 | 8.5 | 8.2 |
10 | उद्योग (2 + 3 + 4 + 5) | 9.7 | 12.2 | 9.7 | 4.4 | 8.0 | 7.9 | 7.1 |
11 | सेवाएं (6 + 7 + 8) | 11.0 | 10.1 | 10.3 | 10.1 | 10.1 | 9.4 | 10.0 |
12 | गैर-कृषि (9 - 1) | 10.5 | 10.8 | 10.1 | 8.2 | 9.4 | 8.9 | 9.0 |
14 | प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (उत्पादन लागत) | 7.8 | 7.8 | 7.6 | 5.0 | 6.2 | 6.8 | 6.4 |
कुछ परिमाण | ||||||||
15 | सकल घरेलू उत्पाद उत्पादन लागत- 2004/05की कीमतें लाख करोड़ रुपयों (या ट्रिलीयन) | 32.5 | 35.7 | 39.0 | 41.6 | 44.9 | 48.8 | 52.8 |
16 | सकल घरेलू उत्पाद बाजार और वर्तमान कीमत लाख करोड़ रुपयों में (या ट्रिलियन | 36.9 | 42.9 | 49.9 | 55.8 | 65.5 | 78.8 | 89.8 |
17 | सकल घरेलू उत्पाद बाजार और वर्तमान मूल्य बिलियन अमेरिकी डॉलर में | 834 | 949 | 1,241 | 1,223 | 1,385 | 1,732 | 1,994 |
18 | जनसंख्या मिलियन में | 1,108 | 1,126 | 1,145 | 1,164 | 1,183 | 1,202 | 1,222 |
19 | प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद वर्तमान मूल्य | 33,317 | 38,117 | 43,554 | 47,975 | 55,384 | 65,517 | 73,460 |
20 | प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद बाजार मूल्य वर्तमान अमेरिकी डॉलर में | 753 | 842 | 1,084 | 1,051 | 1,171 | 1,441 | 1,632 |
कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 के अंतर्गत पात्र सार्वजनिक और निजी कंपनियों को लगभग 50 बिलियन टन भू-वैज्ञानिक भंडार वाले 216 कोयला ब्लॉक आबंटित किए गए हैं। उनमें से 24 कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द कर दिया गया है। आवंटन रद्द किए गए कोयला ब्लॉकों में से 2 कोयला ब्लॉकों को उक्त अधिनियम के अंतर्गत पात्र कंपनियों को पुन: आवंटित किया गया था। उपर्युक्त के मद्देनजर, कुल आवंटित ब्लॉक 194 कोयला ब्लॉक हैं, जिसमें लगभग 44.44 बिलियन टन के भू-वैज्ञानिक भंडार हैं। इनमें से 28 कोयला ब्लॉकों में उत्पादन आरंभ हो गया है। शेष ब्लॉक विकास के विभिन्न चरणों में हैं।
भारत के भूगर्भिक सर्वेक्षण द्वारा 01 अप्रैल, 2011 को प्रकाशित भारतीय कोयला संसाधनों पर अधतन राष्ट्रीय खेज के अनुरूप मूल्यांकन किए गए कुल कोयला संसाधनों की मात्रा लगभग 2858622.1 लाख टन है, जिसमें 1140016 लाख टन या लगभग 40 प्रतिशत मात्रा प्रमाणित भंडार हैं। लगभग 5500 लाख टन के उत्पादन के वर्तमान स्तर पर देश में कोयला संसाधन 100 वर्षों से भी ज्यादा समय तक बने रहेंगे। हालांकि खोज एक सतत प्रक्रिया है और नये संसाधन वर्ष प्रति वर्ष बढ़ते जाते हैं।
पिछले तीन वर्षों 2007-08, 2008-09 और 2009-10 के दौरान किए गए ऐसे सर्वेक्षणों के परिणाम और राज्य वार पर आकलित खनिज भंडारों की मात्रा की विस्तृत जानकारी नीचे दी गई है। वर्तमान वर्ष 2010-12 के लिए विस्तृत जानकारी के संबंध में कार्य प्रगति पर है और संसाधनों, उनकी मात्रा इत्यादि का आंकलन कार्य समाप्त होने के बाद किया जाएगा।
खनिज | 2007-08 | 2008-09 | 2009-10 |
कोयला व लिग्नाइट | 1. मध्यप्रदेश 2. ओडि़शा 3. आंध्र प्रदेश 27600 लाख टन के कुल अतिरिक्त भंडार का आकलन किया गया | 1. पश्चिम बंगाल 2. छत्तीसगढ़ 3. राजस्थान 16387.1 लाख टन के कुल अतिरिक्त भंडार का मूल्यांकन किया गया. | 1. झारखंड 2. छत्तीसगढ़ 3. राजस्थान 34214.9 लाख टन के कुल अतिरिक्त भंडार का आकलन किया गया |
स्वर्ण अयस्क | 1. राजस्थान 2. कर्नाटक 416.5 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधनों का आकलन किया गया | 1. राजस्थान 2. छत्तीसगढ़ 3. उत्तर प्रदेश 230 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधनों का आकलन किया गया | 1. झारखंड 2. कर्नाटक 3. राजस्थान 57.1 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधनों का आकलन किया गया |
आधार धातु | 1. राजस्थान 2. मध्यप्रदेश 3. हरियाणा तांबा अयस्क के 363.1 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधन का आकलन किया गया जस्ता अयस्क के 19.1 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधन का आकलन किया गया | 1. हरियाणा 2. मध्यप्रदेश जस्ता अयस्क के 9.8 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधन का आकलन किया गया | - |
लौह अयस्क | 1. कर्नाटक 2. ओडिशा 144.4 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधन का आकलन किया गया | 1. तमिलनाडु 2. ओडिशा 230.3 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधन का आकलन किया गया | 1. ओडिशा 46.1 लाख टन के कुल चिन्हित संसाधन का आकलन किया गया |
मैगनीज अयस्क | 1. ओडिशा 24.1 लाख टन के कुल चिन्हित संसाधन का आकलन किया गया | 1. ओडिशा 9.4 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधन का आकलन किया गया | 1. ओडिशा 0.7 लाख टन के कुल चिन्हित संसाधन का आकलन किया गया |
मॉलिब्डेनम | - | - | 1. तमिलनाडु 154.2 लाख टन के कुल अनुमानित संसाधन का आकलन किया गया |
चूना पत्थर | 1. मध्यप्रदेश 15.2 लाख टन के कुल चिन्हित संसाधन का आकलन किया गया | 1. राजस्थान 5713.5 लाख टन के कुल सर्वेक्षण संसाधन का आकलन किया गया | - |
प्लेटिनम तत्व समूह (पीजीई) | - | 1. कर्नाटक 8.4 लाख टन के कुल सर्वेक्षण संसाधन का आकलन किया गया | 1. तमिलनाडु 2.5 लाख टन के कुल सर्वेक्षण संसाधन का आकलन किया गया |
जीएसआई केंद्रीय बजट के माध्यम से आवंटित की गई राशि से सर्वेक्षण संबंधी अपनी गतिविधियों (खनिज खुदाई) को संचालित करता है। इस प्रकार प्राप्त राशि छह क्षेत्रों में वितरित की जाती है - 1. पूर्वी क्षेत्र (बिहार, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल) 2. केंद्रीय क्षेत्र (महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़) 3. दक्षिणी क्षेत्र (आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक) 4. उत्तरी क्षेत्र (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब) 5. पश्चिम क्षेत्र (राजस्थान, गुजरात) और 6. पूर्वोत्त्र क्षेत्र (असम, अरूणाचल प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड)। इस प्रकार जीएसआई राज्य आधार पर व्यय का कोई रिकॉर्ड नहीं रखता है। पिछले तीन वित्तीय वर्षों और वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान सर्वेक्षणों पर जीएसआई द्वारा आवंटित कुल राशि/खर्च की गई कुल राशि इस प्रकार है -
[लाख रूपये में]
2008-09 | 2009-10 | 2010-11 | 2011-12 | ||||
आवंटित | व्यय किए गए | आवंटित | व्यय किए गए | आवंटित | व्यय किए गए | आवंटित जून 2011 तक | व्यय किए गए जून 2011 तक |
1202.90 | 1184.75 | 1063.84 | 1033.70 | 1350.55 | 1304.00 | 768.00 | 255.36 |
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता है । भारत द्वारा अब तक किये गए सभी समझौतों में यह सर्वाधिक व्यापक समझौता है क्योंकि इसमे 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार का प्रावधान है । इस समझौते के अधीन भारत द्वारा मात्र 17.4 प्रतिशत प्रशुल्क रेखा को शून्य प्रतिशत तक तत्काल कम करने की पेशकश की गई है । व्यापार उदारीकरण से तालमेल बैठाने का उद्योग को पर्याप्त समय देने के लिए 66.32 प्रतिशत शुल्क को 10 वर्षों में शून्य पर लाया जाएगा ।
भारत-जापान सीईपीए के अधीन भारतीय पेशेवर अपनी सेवाएं उपलब्ध करा सकेंगे और जापान के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के अधिक विकास में येागदान कर सकेंगे । जापान भी तीन वर्ष की निर्धारित अवधिमें भारत के साथ सामाजिक सुरक्षा समझौता करने पर सहमत हो गया है ।
भारत-जापान सीईपीए समझौते के अधीन भारत जापान के पूंजी निवेश, प्रौद्योगिकी और विश्वस्तरीय प्रबंध प्रणालियों से लाभान्वित होगा । जापान भारत के विशाल और बढ़ते हुए बाजार तथा संसाधन विशेष रूप से उसके मानव संसाधनों का लाभ उठा सकता है । इस समझौते से भारत और जापान के आर्थिक संबंध और सुदृढ़ होंगे, जिससे दोनों देशों को अत्याधिक लाभ पहुंचेगा ।
भारत और जापान के बीच वर्तमान द्विपक्षीय व्यापार 12.6 अरब अमरीकी डॉलर से कुछ अधिक है । आशा है कि2014 तक यह व्यापार 25 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुंच जाएगा ।
केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय, सांख्यिकी व कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों के आधार पर, वर्ष 2008-09 के दौरान जीडीपी और कुल ओद्योगिक उत्पादन में सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों (एमएसई) का योगदान अनुमानित रूप से क्रमश: 8.72 प्रतिशत और 44.86 प्रतिशत था । निर्यात संवर्धन परिषदों से प्राइज़ आंकड़ों (नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों) के आधार पर वर्ष 2007-08 के लिए देश के कुल निर्यातों में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) का अनुमानित योगदान 30.80 प्रतिशत था।
एमएसएमई की चौथी अखिल भारतीय गणना-2006 के दौरान सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के संबंध में एकत्रित उद्यमवार आंकड़के दर्शाते हैं कि 15.64 लाख पंजीकृत उद्यमों में से, अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित उद्यमियों के पास 5.99 लाख (38.28 प्रतिशत) उद्यमों का स्वामित्व था, जबकि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उद्यमियों के स्वामित्व में क्रमश: 1.19 लाख (17.6 प्रतिशत) और 0.45 लाख (2.87 प्रतिशत) उद्यम थे। सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के पास कुल मिलाकर 48.75 प्रतिशत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का स्वामित्व था। महिला उद्यमियों के स्वामित्व में भी 2.15 (13.72 प्रतिशत) लाख उद्यम थे। उपरोक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि एमएसएमई का विकास समावेशी है।
योजना आयोग , वित्त मंत्रालय और अन्य मंत्रालयों/विभगों/राज्य सरकार और आवास क्षेत्र से जुड़े वित्तीय तथा अन्य संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ 27 जनवरी, 2005 को तत्कालीन सचिव, शहरी रोजगार और गरीबी उपश्मन मंत्रालय की अध्यक्षता में एक कार्य बल का गठन किया गया था । उक्त कार्य बल ने कानूनी, विनियामक, वित्तीय मामले में तथा प्रौद्योगिकी संबंधी मुद्दों पर विभिन्न सूचनाओं पर आधारित इस मंत्रालय को एक औपचारिक प्रारूप नीति प्रस्तुत की थी।कार्यबल की संस्तुतियों के साथ-साथ विभिन्न राज्य सरकारों और केन्द्रीय मंत्रालयों, गैर सरकारी संगठनों और अन्य पक्षकारों से प्राप्त सूचनाओं का उपयोग राष्ट्रीय शहरी आवास और पर्यावास नीति, 2007 का प्रारूप तैयार करने के लिए किया गया है, जिसमें अन्य मुद्दों के साथ आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और निम्न आय वर्गों के लिए आवास की संख्या बढ़ाने हेतु उपायों पर भी विचार किया जाता है। राष्ट्रीय शहरी आवास और पर्यावास नीति (एनयूएचएचपी), 2007 का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के लिए किफायती कीमतों पर भूमि, आश्रय और सेवाओं की समान आपूर्ति सुनिश्चित करने की दृष्टि से देश में पर्यावास का तेजी से सुस्थिर विकास करना है। तथापि, ‘भूमि’ तथा ‘कॉलोनी बसाना’ राज्य का विषय होने के नाते यह सरकारों का दायित्व है कि वे एनयूएचएचपी -2007 के अंतर्गत किए गए पहल-प्रयासों को आगे बढ़ाएं। तथापि, केंद्र सरकार विभिन्न योजनागत हस्तक्षेपों के माध्यम से राज्यों को सहायता प्रदान कर रही है।
राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) ने देश में मलिन बस्तियों की स्थितियों पर अपने नमूना सर्वेक्षण के 65वें चक्र के आधार पर ‘’शहरी मलिन बस्तियों की कुछ विशिष्टताएं 2008-09’’ नामक एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में मलिन बस्तियों, जिनका सर्वेक्षण किया गया है (24781 अधिसूचित और 24213 गैर-अधिसूचित) की कुल संख्या 48,994 है। शहरी गरीबों के लिए आवास हेतु ब्याज सब्सिडी स्कीम भारत सरकार द्वारा 26 दिसंबर, 2008 को आरंभ की गई थी। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य ईडब्ल्यूएस और एलआईजी के लिए 5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज सब्सिडी देते हुए, जिसमें ऋण की पूर्ण अवधि तक एक लाख रूपये तक की अधिकतम ऋण धनराशि अनुमेय है, मकान की खरीद/नये मकान के निर्माण हेतु किफायती आवास ऋण की सुविधा प्राप्त करने के लिए ईडब्ल्यूएस और एलआईजी परिवारों को समर्थ बनाना है। विगत तीन वर्षों के दौरान इस स्कीम के माध्य से 7526 शहरी गरीब लाभान्वित हुए हैं।
स्लम मुक्त भारत का निर्माण करने की सरकारी की परिकल्पना के अनुसरण में, 30 जून, 2011 को राजीव आवास योजना (आरएवाई) नामक एक नई स्कीम शुरू की गई है। इस स्कीम में स्लम वासियों को संपत्ति का अधिकार देने के इच्छुक राज्यों को स्लम पुनर्विकास के लिए उपयुक्त आश्रय, बुनियादी नागरिक एवं सामाजिक सेवाओं के प्रावधान और किफायती आवासों के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी। बुनियादी नागरिक एवं सामाजिक अवसंरचना एवं सुविधाओं और किराया आवास समेत आवास तथा स्लमों में स्व-स्थानों पुनर्विकास के लिए पारगमन आवासों के प्रावधान की लागत का 50 प्रतिशत इस स्कीम के अंतर्गत सृजित परिसम्पत्तियों के परिचालन एवं अनुरक्षण सहित केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। पूर्वोत्तर एवं विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए केन्द्र सरकार का अंश भूमि अधिग्रहण, यदि अपेक्षित हो, की लागत समेत 90 प्रतिशत होगा।
मंत्री महोदया ने सदन को यह भी जानकारी दी कि स्लमों को रोकने की नीति के एक भाग के रूप में, भूमि जुटाने को प्रोत्साहन देने तथा सस्ते आवासों की संख्या को बढ़ाने के लिए भागीदारी में किफायती आवास योजना को राजीव आवास योजना के साथ समन्वित किया जाएगा और किफायती आवास इकाइयों को प्रति इकाई 50 हजार रुपए या नागरिक अवसंरचना (बाहरी तथा भीतरी) की लागत का 25 प्रतिशत, जो भी कम हो, की दर से केन्द्रीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
ऋण सामर्थ्य बनाने के उपाय के रूप में, शहरी गरीबों के आवास के लिए ब्याज सब्सिडी स्कीम को भी राजीव आवास योजना के साथ समन्वित किया जाएगा, जिसकी सब्सिडी ऋण की विद्यमान सीमा एक लाख रुपए होगी।
शहरी गरीबों के आवासीय उद्देश्य के लिए ऋण को सुविधाजनक बनाने के लिए, सरकार ने चालू वर्ष में 1,000 करोड़ रुपए के समग्र कोष से ऋण जोखिम गारंटी निधि स्थापित करने के लिए अनुमोदन प्रदान किया है।
स्लम मुक्त भारत का निर्माण करने की सकार की परिकल्पना के अनुसरण में, दिनांक 02.06.2011 को राजीव आवास योजना’ (रे) नामक एक नई स्कीम शुरू की गई है। राजीव आवास योजना के चरण-1 की अवधि स्कीम के अनुमोदन की तारीख से दो वर्ष की जिसके लिए 5000 करोड़ रूपये के बजट की व्यवस्था की गई है और व्यय को वास्तविक योजना परिव्यय तक सीमित किया गया है। इस स्कीम में उन राज्यों को सहायता दी जाएगी जो मलिन विकास और किफायती आवासों के निर्माण हेतु उत्तम आश्रय, बुनियादी नागरिक एवं सामाजिक सेवाओं के प्रावधान हेतु मलिन बस्तियों को संपति का अधिकार देने के इच्छुक हैं।
इस स्कीम का अनुमोदन 2 चरणों में किया गया है। पहले चरण की अवधि वर्ष्2011-13 है और द्वितीय चरण की अवधि 2013 से 12वीं योजना के अंत तक है। इस स्कीम में 12वीं योजना (2017) के अंत तक देशभर में लगभग 250 शहरों को शामिल किए जाने का अनुमान है। शहरों का चयन केंद्र सरकार के परामर्श से किया जाएगा। राज्यों द्वारा जेएनएनयूआरएम के सभी मिशन शहरों विशेषत: 2001 की जनगणना के अनुसार 3 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों, स्लमों, अल्पसंख्यक बहुल्य आबादी वाले शहरों के विकास की गति पर ध्यान पूर्वक विचार करते हुए अन्य छोटे शहरों और उन क्षेत्रों जहां संपत्ति का अधिकार दिया गया है, को शामिल किया जाना अपेक्षत है। स्कीम की प्रगति राज्यों द्वारा निर्धारित गति पर चलेगी। स्लम मुक्त शहरी आयोजना स्कीम के अंतर्गत प्रारंभिक कार्यकलाप करने के लिए 157 शहरों को 99.98 करोड़ रूपये की राशि जारी की गई है। चूंकि यह स्कीम 2 जून 2011 को अनुमोदित की गई है इसलिए आवासीय इकाईयों का निर्माण अभी शुरू किया जाना है।
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